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सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 4 की संवैधानिक वैधता को अनुच्छेद 14, 15, 25, 26 और 29 (1) के आधार पर चुनौती दी गई है। याचिका में दलील दी गई है कि उक्त अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता। अधिनियम की धारा 4 (1) में कहा गया है- "एतद् द्वारा यह घोषणा की जाती है कि 15 अगस्त 1947 को विद्यमान पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वैसा ही रहेगा जैसा उस दिन था।" अधिनियम की धारा 4 (2) का प्रावधान है- "अधिनियम के प्रारंभ होने पर, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद, किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के रूपांतरण के संबंध में कोई मुकदमा, अपील या अन्य कार्यवाही, यदि किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या अन्य के समक्ष लंबित है, वह समाप्त होगा, और किसी भी ऐसे मामले के संबंध में या किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या अन्य प्राधिकरण में इस प्रकार के किसी भी मामले के संबंध में या उसके खिलाफ कोई मुकदमा, अपील या अन्य कार्यवाही नहीं होगी; यदि कोई मुकदमा, अपील या अन्य कार्यवाही, इस आधार पर स्थापित या दायर की गई हो कि किसी इस प्रकार के स्थान के धार्मिक चरित्र में रूपांतरण 15 अगस्त 1947 के बाद हुआ है, इस अधिनियम के प्रारंभ होने पर लंबित है, ऐसा मुकदमा अपील या अन्य कार्यवाही उप-धारा (1) के प्रावधानों के अनुसार निस्तारित की जाएगी।"