आजकल पितृपक्ष चल रहा है । Social Media पर तरह तरह तरह के पोस्ट दिखायी दे रहे हैं । पहले सब पितृपक्ष के विरोध में पोस्ट होते थे । आजकल कुछ पक्ष में भी दिखायी देते हैं । जो लोग मजाक उडाते हैं कहते हैं ये ढ़कोसला है दरअसल मुझे उन पर और उनके ज्ञान पर तरस आता है । अपने ग्रंथों का अध्ययन ठीक से किया हो अपनी समृद्ध परंपरा का ज्ञान हो तो शायद वे श्राद्ध का मजाक न उडाएं । वैसे भी श्राद्ध वहीं कर सकता है जिसके मन में श्रद्धा है । बिना श्रद्धा के ना ही करें तो अच्छा है । हमारे पुरखे देह छोड़ने के बाद भी हमारी चिंता करते हैं । पितर लोक में बैठ कर देखते हैं हम क्या अच्छा क्या बुरा कर रहे हैं । मैं आपके साथ अपना सच्चा अनुभव साझा करना चाहूंगी ।
मेरे बीजी पापा के विवाह से पहले ही मेरे दादा जी दुनिया से चले गए थे । हमने तो क्या हमारी बीजी ने भी मेरे दादा जी को नहीं देखा था । हमारे पूरे परिवार में उनकी कोई तस्वीर भी नहीं थी । हम नहीं जानते वे कैसे दिखते थे । हुआ यूं कि हमारी मां जी यानी मेरी दादी जी को दिसंबर के महीने में ब्रेन हेमरेज हुआ और उनको बांयी तरफ लकवा मार गया । उनको मेरे सबसे बड़े ताऊ जी की अचानक मृत्यु से आघात लगा था । उस समय संयोगवश मेरे सहारनपुर वाले ताऊ जी ताई जी और मां गांव में ही थे । ताऊ जी की मृत्यु का समाचार पाकर हम सब गांव पहुंचे लेकिन मां जी को कोई होश भी नहीं था । खैर ताऊ जी की तेरहवीं के बाद सब अपने घरों को लौटने लगे । लेकिन सवाल ये कि मां जी का इलाज कैसे होगा किसके पास रहेंगी । अंत में फैसला हुआ कि हमारे पास रहेगीं । परिवार के बाकी सदस्यों ने कहा आप रख लो इलाज के पैसे हम दे देंगें । उन दिनों मेरे पापा जी का बिजनेस बहुत डाऊन था । लेकिन मेरे पापा जी ने साफ मना कर दिया कि जो बन पड़ेगा खुद कर लेंगें । खैर मां जी हमारे पास आयीं । अगले ही दिन पापा जी ने मेरी बहन को कालका भेजा हमारे पारिवारिक डॉक्टर अमरनाथ शर्मा को बुलाने के लिए । उन दिनों में यदि आपको याद हो तो डॉक्टर अपना भूरा या काला बैग लेकर मरीज को देखने घर आया करते थे । डॉ अमरनाथ आए उन्होनें मां जी को देखा अस्पताल में दाखिल कराने का आर्थिक सामंर्थ्य हमारा नहीं था । डॉक्टर ने दवाएं लिख दीं । लेकिन साथ ही कहा – दिन में चार बार दोनों हाथों और दोनों पैरों की गर्म तेल से मालिश और सौ सौ बार एक्सरसाइज़ करवानी है । यानि एक बार में चार सौ एक्सरसाइज़ । मेरी बीजी उनकी नहलाना धुलाना , उनका नित्य कर्म करवाना आदि करती मैं दिन में चार बार एक्सरसाइज़ और मालिश करवाती ।रात को मैं और मेरी बहन मां जी के पास उनके कमरे में सोते ताकि रात को उनको कोई भी ज़रूरत पड़े हम उनका काम कर सकें । मेरी मां जी पतली दुबली थी हम दोनों बहनें रात को उनको संभाल लेते । उन दिनों में एम ए पॉलिटिकल सांइस प्रथम वर्ष में थी । दिन भर में चार बार चार सौ एक्सरसाईज़ करवाने में बहुत टाईम लगता था थकान भी हो जाती थी । मुझे उस साल अपनी परीक्षाएं छोड़नी पड़ीं । एक भी दिन मेरी बीजी ने उनको बिना नहाए , हर रोज बिना साफ कपड़े पहने नहीं रहने दिया । उनके जो सख्त नियम थे उन सबका लकवे की स्थिति में पालन किया । वे हमसे कहतीं यदि हमने इनके नियम नहीं निभाए तो पाप हमें ही लगेगा ।
पूरे परिवार की सेवा का फल 21 दिन के भीतर ही सामने आ गया । मां जी खुद उठ कर चलने लगीं खुद नहायीं अपनी दैनिक पूजा की और रसोई में बैठ कर खाना खाया । उनका सख्त नियम था कि वे रसोई से बाहर खाना नहीं खाती थीं। हम ज़रा भी छू जाएं तो खाना छोड़ देती थीं। उनके भोजन के समय एक ही व्यक्ति रसोई में रह सकता था जो खाना पका रहा है। दिन रात मां जी हमें दुआएं देतीं ।
एक रात मुझे सपना आया हमारे दरवाजे की कुंडी किसी ने खटखटायी। मैने ही दरवाजा खोला हमारे घर में प्रवेश द्वार के बाद खुला आंगन था। एक पतला दुबला वृद्ध पुरूष हाथ में सब्जियों और फलों का थैला लेकर अंदर आया। मुझे बताया मैं तेरा बाबा हूं। तुम्हारे लिए फल सब्जी लाया हूं ये लो रख लो । मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा बहुत सेवा करी अपनी दादी की तुमने । मैनें उनसे भीतर आने का अनुरोध किया उन्होनें मना कर दिया । बोले अभी जल्दी में हूं फिर कभी आऊंगा। वो घर से निकले मैं उनके पीछे पीछे गयी उनसे आग्रह करती रही। हमांरे घर के पास स्कूल का ग्राऊंड था वो वहां तक गए मुझसे कहा बेटी तू घर जा ।
सुबह उठ कर मैनें अपने पापा को सपने में दिखे अपने बाबा जी का पूरा हुलिया बताया उन्होनें कहा हां ऐसे ही लगते थे मेरे भाई जी। उन दिनों में पिता को भाई ,चाचा का कहने का ही रिवाज था । संयुक्त परिवारों के कारण पिता संबोधन कम ही था। आप यकीन मानिए कहां तो हमारे पास घर खर्च चलाने के भी पर्याप्त पैसे नहीं थे कहां देखते ही देखते आर्थिक हालात ठीक होते चले गए। उनका आशीर्वाद खूब फला फूला। अब आप ही बताएं मैं कैसे ना मानूं कि हमारे पुरखे होते हैं उनका पूरा पूरा अस्तित्व है। वे हमारे आस पास हमेशा रहते हैं। पितृेभ्यो नम : जो विश्वास नहीं करते उनको विश्वास दिलाया नहीं जा सकता और जो विश्वास रखते हैं उनका विश्वास तोड़ा नहीं जा सकता।
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साभार : सर्जना शर्मा प्रस्तुति सहयोग : प्रमोद शर्मा